मैमोग्राफ़ी के लिए एआई
एआई की मदद से, स्तन कैंसर की जांच बेहतर तरीके से करना
हम डॉक्टरों, मरीज़ों, और पार्टनर के साथ मिलकर, मैमोग्राफ़ी का विश्लेषण करने के लिए एआई आधारित सिस्टम बना रहे हैं. इसकी मदद से, रेडियोलॉजिस्ट ज़्यादा जल्दी, सटीक, और बेहतर तरीके से स्तन कैंसर का पता लगा सकेंगे.
हर साल 20 लाख से ज़्यादा महिलाओं में स्तन कैंसर के मामलों का पता चलता है
स्तन कैंसर, दुनिया भर में कैंसर का सबसे सामान्य स्वरूप है. शुरुआती चरण में इसका पता लगने पर इस बीमारी से बचने की संभावना बढ़ जाती है. बीमारी से बचने के लिए, सही समय पर जांच कराना ज़रूरी है, लेकिन विशेषज्ञों की कमी की वजह से स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सिस्टम पर बोझ बढ़ जाता है. नतीजतन, लोगों को जांच के नतीजे जानने के लिए लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़ता है.
हमारी रिसर्च से पता चलता है कि एआई, स्तन कैंसर का उतना ही सटीक तरीके से पता लगा सकता है, जितना कि एक रेडियोलॉजिस्ट
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से काम करने वाले सिस्टम को स्तन कैंसर का पता लगाने वाले मशीन और टूल के साथ इंटिग्रेट कर दिया जाता है. इसकी वजह से रेडियोलॉजिस्ट ज़्यादा जल्दी और सटीक तरीके से कैंसर का पता लगा पाते हैं. पब्लिश की गई हमारी रिसर्च से पता चलता है कि हमारी टेक्नोलॉजी, एक प्रशिक्षित रेडियोलॉजिस्ट की तरह ही स्तन कैंसर के संकेतों का पता लगा सकती है.
एआई सिस्टम को ट्रेनिंग देने के लिए, हज़ारों डी-आइडेंटिफ़ाइड मैमोग्राम का इस्तेमाल किया जाता है
यह मॉडल, Google की आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके मैमोग्राम को बेहद बारीकी से पढ़ता है, जिससे कैंसर के संकेतों का पता लगाने में मदद मिलती है. यही वजह है कि सिस्टम ऐसे संकेतों का भी पता लगा सकता है जिन्हें शायद कुछ कैंसर विशेषज्ञ भी न देख पाएं. हमारा मानना है कि अगर इंसान और एआई की क्षमताओं को मिला दिया जाए, तो आने वाले समय में स्तन कैंसर का बेहतर तरीके से पता लगाया जा सकेगा.
मरीज़, डॉक्टर, और स्वास्थ्यकर्मी हमारी मदद कर रहे हैं
आम लोगों को शामिल करने के लिए बनाए गए फ़ोरम में डेला ओगुनलिये किस तरह योगदान देती हैं, इस बारे में ज़्यादा जानें. इस फ़ोरम पर आम लोग, मैमोग्राफ़ी के लिए तैयार किए जाने वाले एआई मॉडल को डिज़ाइन करने, उसे टेस्ट, और उसका इस्तेमाल करने के बारे में सलाह और जानकारी देते हैं.
हम अपने पार्टनर के साथ मिलकर, इस टेक्नोलॉजी को डॉक्टरों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे असली मरीज़ों पर इसे आज़मा सकें
हम नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन के साथ मिलकर रिसर्च कर रहे हैं. इसकी मदद से हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारे रिसर्च मॉडल जांच के बाद, कैंसर की पुष्टि करने की प्रोसेस को तेज़ करने और ज़्यादा जोख़िम वाले मरीज़ों को प्राथमिकता देने में किस तरह मदद कर सकते हैं.
हम इंपीरियल कॉलेज लंदन और तीन एनएचएस ट्रस्ट के साथ मिलकर, एनएचएस एआई अवॉर्ड प्रोग्राम के लिए काम कर रहे हैं. इस प्रोग्राम की मदद से हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारे रिसर्च मॉडल, यूके में कैंसर का सही तरीके से पता लगाने के लिए दो बार की जाने वाली जांच में “सेकंड इंडिपेंडेंट रीडर” के तौर पर काम कर सकते हैं या नहीं. इससे रेडियोलॉजिस्ट को गंभीर मरीज़ों पर ध्यान देने का समय मिलेगा. साथ ही, जांच की क्वालिटी में भी सुधार लाया जा सकेगा.
पार्टनरशिप की मदद से, रिसर्च के नतीजों को हकीकत में बदलना
हम iCAD जैसे जाने-माने पार्टनर के साथ काम कर रहे हैं, ताकि मैमोग्राफ़ी के लिए तैयार किए गए एआई मॉडल को हॉस्पिटल में इस्तेमाल किए जाने की प्रोसेस को तेज़ किया जा सके. iCAD हमारी टेक्नोलॉजी को अपने ProFound Breast Health Suite में शामिल करेगा, ताकि दुनिया भर के मरीज़ों को हमारे एआई मॉडल से फ़ायदा मिल सके.
डेमोग्राफ़िक के हिसाब से कैंसर के टाइप और उनसे होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में अंतर होता है
नस्ल और जातीयता के हिसाब से, स्तन की डेंसिटी में अंतर होता है. इसलिए, हम अपने डेटासेट में अलग-अलग डेमोग्राफ़िक्स (उम्र, लिंग, आय, शिक्षा वगैरह) को शामिल करना चाहते हैं, ताकि हर नस्ल और जाति की महिलाओं की मदद के लिए एक असरदार टूल बनाया जा सके.
इसी बात को ध्यान में रखते हुए, हमने जापान के अरियाके हॉस्पिटल जैपनीज़ फ़ाउंडेशन फ़ॉर कैंसर रिसर्च (जेएफ़सीआर) के साथ पार्टनरशिप की है, ताकि हम अपने एआई मॉडल को हर किसी की ज़रूरत के हिसाब से बेहतर बना सकें. इस दिशा में काम जारी रखते हुए, हम अपने प्रॉडक्ट को ज़्यादा से ज़्यादा समुदायों और नस्लों के हिसाब से ट्रेनिंग देने के तरीके एक्सप्लोर कर रहे हैं.
जैपनीज़ कैबिनेट ऑफ़िस के स्ट्रैटजिक इनोवेशन प्रमोशन प्रोग्राम के तहत शुरू किए गए “एआई हॉस्पिटल” के निदेशक और द कैंसर इंस्टिट्यूट ऑफ़ जेएफ़सीआर के सलाहकार
“अगर स्तन कैंसर का शुरुआती चरण में पता लग जाए, तो उसके ठीक होने की संभावना काफ़ी हद तक बढ़ जाती है. कैंसर की जांच के लिए एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके, हम न सिर्फ़ ज़्यादा बेहतर और सटीक तरीके से कैंसर का पता लगा सकते हैं, बल्कि रेडियोलॉजिस्ट के काम का बोझ भी कम कर सकते हैं. इस टेक्नोलॉजी की मदद से, वे आसानी के साथ बहुत सी महिलाओं की मेडिकल जांच कर सकते हैं.”