वैज्ञानिकों के नेतृत्व में हेल्थ रिसर्च और उसमें Google का योगदान
डॉक्टरों, नर्सों, और स्वास्थ्य शोधकर्ताओं के साथ पार्टनरशिप करके, Google Health ऐसी सुरक्षित टेक्नोलॉजी उपलब्ध करा रहा है जिससे स्वास्थ्य के बारे में लोगों की समझ को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है. इन पार्टनरशिप के तहत, हमें लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञों का सहयोग मिलता है.
अपने समुदाय के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना
व्यक्ति की तरह ही समुदाय को भी अपने हिसाब से स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत होती है. Google Health Studies की रिसर्च में हिस्सा लेकर, मुख्य संस्थानों और शोधकर्ताओं को आपके समुदाय की स्वास्थ्य समस्याओं और ज़रूरतों को बेहतर तरीके से समझने में मदद करें. इससे आपके इलाके के लोगों के स्वास्थ्य और आने वाले समय में सबके लिए हेल्थकेयर को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.
डिजिटल वेलबीइंग से जुड़ी स्टडी
सांस की बीमारियों से जुड़ी स्टडी
डिजिटल वेलबीइंग से जुड़ी स्टडी
डिजिटल वेलबीइंग के बारे में लोगों की समझ को बेहतर बनाने में योगदान दें
दूसरी स्टडी, डिजिटल वेलबीइंग से जुड़ी है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओरेगॉन का सेंटर फ़ॉर डिजिटल मेंटल हेल्थ, इस पर काम कर रहा है. इस स्टडी में हिस्सा लेने पर आपको कुछ डेटा देना होगा. इस डेटा से शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद मिलेगी कि स्मार्टफ़ोन के इस्तेमाल के पैटर्न का लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से क्या संबंध है.
डॉ॰ निकोलस ऐलन, क्लिनिकल साइकोलॉजी के ऐन स्विंडल्स प्रोफ़ेसर और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओरेगॉन में सेंटर फ़ॉर डिजिटल मेंटल हेल्थ के डायरेक्टर.
“डिजिटल टेक्नोलॉजी हमारे जीवन के हर पहलू को बदल रही हैं, लेकिन हमें इस बारे में और जानने की ज़रूरत है कि ये लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और वेलबीइंग पर क्या असर डालती हैं. इस नई स्टडी से इस सवाल का जवाब मिल सकता है.”
सांस की बीमारियों से जुड़ी स्टडी
सांस की बीमारियों को बेहतर ढंग से समझने में शोधकर्ताओं की मदद करना
Google Health Studies की मदद से, लोग मुख्य तौर पर दो हेल्थ स्टडी में हिस्सा ले सकते हैं. पहली, सांस की बीमारियों से जुड़ी स्टडी है. बोस्टन चिल्ड्रंस हॉस्पिटल और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, इस पर साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस स्टडी में हिस्सा लेने पर आपको कुछ डेटा देना होगा. इस डेटा से शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद मिलेगी कि डेमोग्राफ़िक्स (उम्र, लिंग, आय, शिक्षा वगैरह), स्वास्थ्य का इतिहास, लोगों की आदतें, और आवाजाही के पैटर्न, सांस की बीमारियों के फैलने में कैसे योगदान देते हैं.
डॉ॰ जॉन ब्राउनस्टीन, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में प्रोफ़ेसर और बोस्टन चिल्ड्रंस हॉस्पिटल के चीफ़ इनोवेशन ऑफ़िसर.
“Google Health Studies, लोगों को मेडिकल रिसर्च में शामिल होने का सुरक्षित और आसान तरीका मुहैया कराता है. साथ ही, शोधकर्ताओं को सांस की बीमारियों से जुड़ी नई महामारी की अहम जानकारी खोजने की सुविधा देता है.”
अपनी जानकारी को निजी रखते हुए, लोगों की मदद करें
सांस की बीमारियों से जुड़े शोध की आपकी जानकारी सुरक्षित रहती है.
शोध से जुड़ा आपका डेटा, आपके डिवाइस में ही सेव रहता है
स्वास्थ्य से जुड़े शोध में हिस्सा लेने के बाद, आपको हर हफ़्ते एक सर्वे पूरा करना होगा. हर सर्वे से जुड़ा आपका डेटा, आपके डिवाइस में ही सेव रहेगा. जैसे: सर्वे के जवाब, जगह की जानकारी का इतिहास, और पहचान ज़ाहिर करने वाली अन्य निजी जानकारी.
आपका डिवाइस, शोध से जुड़े आपके डेटा के आधार पर आंकड़ों की गणना करता है
शोध के दौरान, आपके डिवाइस पर अलग-अलग क्वेरी भेजी जाती हैं. डिवाइस, शोध से जुड़े आपके डेटा के आधार पर आंकड़ों की गणना करता है और नतीजों पर पहुंचता है. इसके बाद, फ़ेडरेटेड ऐनलिटिक्स की मदद से सारा डेटा एग्रीगेट करने के लिए, इन नतीजों को एन्क्रिप्ट (सुरक्षित) करता है.
शोध में हिस्सा लेने वाले सभी लोगों का डेटा एग्रीगेट किया जाता है
फ़ेडरेटेड ऐनलिटिक्स टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके, अलग-अलग डिवाइसों से मिले, शोध के एन्क्रिप्ट किए गए नतीजों को एग्रीगेट किया जाता है. Google और किसी भी शोध पार्टनर को, शोध में हिस्सा लेने वाले किसी भी व्यक्ति का डेटा अलग से नहीं भेजा जाता है.
ऐसा शोध जिसमें आपकी निजता का पूरा ध्यान रखा जाता है
एग्रीगेट किए गए नतीजे, शोधकर्ताओं को सुरक्षित तरीके से भेजे जाते हैं. स्वास्थ्य से जुड़े शोध में सुरक्षित तरीके से हिस्सा लिया जा सकता है. Google या कोई तीसरा पक्ष, शोध से जुड़ी आपकी ऐसी कोई भी जानकारी ऐक्सेस नहीं कर सकता जिससे आपकी पहचान ज़ाहिर हो.
आपके स्वास्थ्य की जानकारी की सुरक्षा
स्वास्थ्य से जुड़ी निजी जानकारी बेहद संवेदनशील होती है. यही वजह है कि Google Health Studies आपके डेटा को निजी और सुरक्षित रखने के लिए, निजता की सुरक्षा के तरीकों का इस्तेमाल करता है. Google Health Studies की रिसर्च में हिस्सा लेने का विकल्प चुनने पर, Google आपसे जुड़ी स्टडी का डेटा पब्लिश नहीं करेगा और न ही इसका इस्तेमाल आपको विज्ञापन दिखाने के लिए करेगा. हालांकि, आपको उन मकसद के लिए साफ़ तौर पर सहमति देनी होगी जिनमें आपकी जानकारी का इस्तेमाल किया जाएगा. आपके पास स्टडी को किसी भी समय आसानी से छोड़ने का विकल्प होगा. ऐप्लिकेशन को हटाने का विकल्प चुनने पर, स्टडी से जुड़े सभी डेटा आपके फ़ोन से हटा दिए जाएंगे और कोई नई जानकारी इकट्ठा नहीं की जाएगी.
प्रतिनिधि सैंपल वाले हेल्थ रिसर्च की ओर एक कदम
Google Health Studies, बड़े रिसर्च संस्थानों के लिए स्टडी में शामिल होने की प्रक्रिया को तेज़ और आसान बनाता है. इसके लिए वह अपने टेक्नोलॉजी इन्फ़्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करता है. अगर आपकी दिलचस्पी अपनी स्टडी को इस प्लैटफ़ॉर्म पर जोड़ने में है, तो ज़्यादा स्टडी के लिए इस ऐप्लिकेशन के उपलब्ध होने पर सूचना पाएं.
क्लिनिकल रिसर्च में, संयुक्त राज्य अमेरिका के 10% से भी कम लोग हिस्सा लेते हैं
अलग-अलग जगहों के हिसाब से, रिसर्च में हिस्सा लेने वाले अलग-अलग नस्ल के लोगों की संख्या में क्या अंतर है?
क्लिनिकल रिसर्च चाहे संयुक्त राज्य अमेरिका में हो या दुनिया के बाकी देशों में, इसमें ज़्यादातर श्वेत लोग ही हिस्सा लेते हैं. ज़्यादातर एशियन लोगों ने उन क्लिनिकल रिसर्च में हिस्सा लिया था जो दुनिया के बाकी देशों में हुई थीं. 2011 - 2015 की जनगणना के मुताबिक, अमेरिका में क्लिनिकल रिसर्च में हिस्सा लेने वाले अफ़्रीकन-अमेरिकन लोगों की संख्या, अमेरिका में उनकी आबादी के बराबर (13%) ही थी
आज ही Google हेल्थ स्टडी में हिस्सा लें
हर हफ़्ते, हेल्थ रिसर्च से जुड़े एक मिनट के सर्वे में हिस्सा लें. इन रिसर्च को मुख्य रिसर्च संस्थान डेवलप कर रहे हैं और इनका नेतृत्व भी कर रहे हैं.