स्वास्थ्य से जुड़ी अहम जानकारी इकट्ठा करने के लिए, स्मार्टफ़ोन सेंसर का इस्तेमाल किया जा रहा है
हम स्वास्थ्य से जुड़ी ज़रूरी जानकारी का पता लगाने के लिए, सेंसर वाली ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित कर रहे हैं जो दुनिया भर में लोगों के स्मार्टफ़ोन पर काम कर सकें. लोगों के डिवाइसों पर ही स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराकर, हम दुनिया भर के लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा सकते हैं.
स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ जानकारी के लिए अब भी खास तरह के डिवाइसों की ज़रूरत पड़ती है
अपने स्वास्थ्य के बारे में ज़रूरी जानकारी पाने के लिए, लोगों को अक्सर खास उपकरणों वाले अस्पताल या क्लिनिक में जाना पड़ता है. इसके अलावा, स्वास्थ्य से जुड़े ऐसे डिवाइस खरीदने पड़ते हैं जिनका इस्तेमाल घर में किया जाता है या जिन्हें पहना जा सकता है. इसकी वजह से, दुनिया भर में कई लोग शरीर में स्वास्थ्य से जुड़े बदलावों का पता नहीं लगा पाते. कमज़ोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों में ऐसा ज़्यादा देखने में आता है.
स्मार्टफ़ोन के सेंसर, जो स्वास्थ्य से जुड़े ज़रूरी सिग्नल इकट्ठा कर सकते हैं और उनका विश्लेषण कर सकते हैं
बेहतरीन हार्डवेयर के बारे में हमारी गहरी समझ और मशीन लर्निंग के क्षेत्र में दुनिया भर में मशहूर विशेषज्ञों की मदद से, हमारी रिसर्च टीम, इंजीनियर, और डॉक्टरों को एआई के साथ काम करने वाले सेंसर बनाने में मदद मिलती है. इन सेंसर की मदद से लोगों को वह जानकारी मिलती है जो स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए ज़रूरी है. यह जानकारी क्लिनिकल रूप से प्रमाणित होती है, लेकिन यह मेडिकल डायग्नोसिस या स्वास्थ्य से जुड़ी किसी स्थिति का आकलन करने के लिए नहीं है.
Pixel डिवाइसों पर खांसी या खर्राटों का पता लगाने की सुविधा
Pixel की मदद से आपको पता चल सकता है कि आपकी नींद पर किन गतिविधियों का असर पड़ता है. जैसे, रात के समय खांसना और खर्राटे लेना. इस सुविधा में Pixel के माइक्रोफ़ोन का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, इसमें रिकॉर्डिंग नहीं की जाती है और न ही डेटा किसी के साथ शेयर किया जाता है. बेडटाइम की जानकारी देने वाली स्क्रीन पर, Pixel यह दिखाता है कि सोने के दौरान आपने कितनी देर तक खर्राटे लिए और कितनी बार आपको खांसी आई.
धड़कन और सांस की दर
धड़कन और सांस की दर से, किसी भी व्यक्ति की सेहत और तंदुरुस्ती के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है. Android या iOS पर Google Fit ऐप्लिकेशन इस्तेमाल करके, धड़कन और सांस की दर मापी जा सकती है. इसके लिए, सिर्फ़ फ़ोन का कैमरा इस्तेमाल किया जाता है.
हमने दोनों सुविधाएं इस तरह डेवलप की हैं कि वे दैनिक जीवन की अलग-अलग परिस्थितियों में काम आ सकें और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मदद मिले. साथ ही, हमने इनके सटीक होने का आकलन करने के लिए क्लिनिकल स्टडी भी की है. उदाहरण के लिए, उंगलियों के ऊपरी हिस्से के रंग में होने वाले बदलाव की मदद से, धड़कन की दर का पता लगाया जाता है. दिल से शरीर के अंगों में खून का बहाव होने पर, उंगलियों के ऊपरी हिस्से का रंग बदल जाता है. उंगलियों के ऊपरी हिस्से के रंग के अलावा, रोशनी, त्वचा का रंग, और उम्र जैसे अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखा जाता है, ताकि यह ऐप्लिकेशन सभी के काम आ सके.
Nest Hub पर स्लीप सेंसिंग की सुविधा
स्लीप सेंसिंग में Motion Sense का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें, डिसप्ले के सबसे नज़दीक सो रहे इंसान की गतिविधि और सांस के ज़रिए यह पता लगाया जाता है कि उसकी नींद कैसी है. स्लीप सेंसिंग की मदद से, सोने में परेशान करने वाली वजहों की पहचान भी की जा सकती है. जैसे, खांसी और खर्राटे की पहचान, कमरे में बदलते तापमान और रोशनी की पहचान. इससे यह समझने में मदद मिलती है कि नींद में दिक्कत आने की वजह क्या है.
स्लीप सेंसिंग, आपकी निजता को ध्यान में रखते हुए डेवलप किया गया है. Motion Sense सिर्फ़ गति का पता लगाता है, अलग-अलग चेहरों या शरीर का नहीं. इसमें आपकी खांसी या खर्राटों की आवाज़ का डेटा सिर्फ़ डिवाइस पर ही प्रोसेस किया जाता है. आपके पास स्लीप सेंसिंग सुविधा को बंद करने के कई विकल्प हैं. इनमें एक हार्डवेयर स्विच भी शामिल है, जिससे माइक्रोफ़ोन बंद किया जा सकता है. आपके पास अपनी नींद का डेटा कभी भी देखने या मिटाने की सुविधा होती है. यह डेटा, निजता बनाए रखने की हमारी नीति के मुताबिक ही प्रोसेस होता है और इसका इस्तेमाल, दिलचस्पी के मुताबिक विज्ञापन दिखाने के लिए नहीं किया जाता.
निजता बनाए रखने वाले सेंसर से जानकारी पाने के लिए नई रिसर्च
दिल से जुड़ी बीमारियों की वजह से, बड़ी तादाद में कमज़ोर आर्थिक स्थिति वाले लोग कम उम्र में ही मौत का शिकार हो जाते हैं. सही समय पर बीमारी का पता लगाना और इलाज करना ज़रूरी है. हालांकि, जोखिम के ऐसे ज़्यादातर मौजूदा मामलों में, शरीर की जांच या लैब में जांच करने की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन सीमित स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं की वजह से इस तरह की जांच करा पाना एक चुनौती हो सकती है. हमने डीप लर्निंग मॉडल इस्तेमाल करके, दिल से जुड़ी बीमारियां होने का जोखिम बताने वाली तकनीक विकसित की है. यह पीपीजी-आधारित स्कोर है, जिससे पता लगाया जा सकता है कि बीमारी की जांच करने में, पीपीजी सेंसिंग टेक्नोलॉजी कारगर है या नहीं. हमारी पिछली रिसर्च की मदद से यह टेक्नोलॉजी ज़्यादातर स्मार्टफ़ोन पर उपलब्ध हो गई है. इसे कम खर्च में, बड़े पैमाने पर जांच करने के लिए डेवलप किया गया है. इस रिसर्च ने सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में, दिल से जुड़ी बीमारियां होने के जोखिम का आकलन स्मार्टफ़ोन से करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए, तकनीक विकसित करने की नींव रखी है.